बिना जांच के दवा लिखने वाले डॉक्‍टर की आई शामत

बिना जांच के दवा लिखने वाले डॉक्‍टर की आई शामत

सेहतराग टीम

हमारे देश में अकसर लोग बिना डॉक्‍टर की सलाह के दवा दुकानों से दवा लेते हैं। दूसरी ओर कई डॉक्‍टर ऐसे होते हैं जो फोन पर मरीज के लक्षण सुनकर दवा सुझा देते हैं। कई बार मरीज डॉक्‍टर के पास नियमित रूप से जांच करा रहा होता है और घर पर तबियत बिगड़ने पर वो फोन से डॉक्‍टर की सलाह लेता है और डॉक्‍टर उसे दवा बदलने या नई दवा लेने के लिए कह देते हैं। मगर अब ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। कम से कम मुंबई में एक डॉक्‍टर दंपति को ऐसा करना भारी पड़ गया है। ऐसे ही एक मामले में एक महिला मरीज की मौत हो जाने के बाद डॉक्‍टर दंपति के खिलाफ लापरवाही से मौत का मामला दर्ज किया गया है और अदालत ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है।

बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि बिना जांच के मरीजों को दवा लिखना आपराधिक लापरवाही की तरह है। अदालत ने एक महिला मरीज की मौत के लिए मामले का सामना कर रहे एक डॉक्टर दंपति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

न्यायमूर्ति साधना जाधव ने स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर दंपति - दीपा और संजीव पावस्कर की ओर से दाखिल अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की। मरीज की मौत के बाद रत्नागिरि पुलिस ने डॉक्टरों पर आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत मामला दर्ज किया था।

पुलिस के मुताबिक महिला को इस साल फरवरी में रत्नागिरि में आरोपी दंपति के अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां पर उसका सिजेरियन ऑपरेशन हुआ और उसने एक शिशु को जन्म दिया। दो दिन बाद उन्हें छुट्टी दे गई। 

अगले दिन महिला बीमार हो गई और उसके रिश्तेदार ने दीपा पावस्कर को इस बारे में बताया तो उन्हें दवा दुकान जाकर दुकानदार से बात कराने को कहा। हालांकि दवा लेने के बाद महिला की हालत ठीक नहीं हुई और फिर से अस्पताल में भर्ती कराया गया। 

दीपा और संजीव पावस्कर महिला को भर्ती कराते समय अस्पताल में नहीं थे। महिला की स्थिति लगातार बिगड़ने के बाद दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया। दूसरे अस्पताल के डॉक्टरों ने पीड़िता के परिजन को सूचित किया कि पावस्कर की ओर से लापरवाही बरती गयी। इसके बाद उनलोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया। 

अदालत ने कहा कि दीपा पावस्कर की गैरमौजूदगी में भी महिला को दूसरे डॉक्टर के पास नहीं भेजा गया और टेलीफोन पर दवा बता लेने को कहा गया। अदालत ने कहा बिना जांच (डायग्नोसिस) के दवा लिखना आपराधिक लापरवाही की तरह है। यह घोर लापरवाही की तरह है। 

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